मेरे बारे में

पढ़ाई में जीरो तो नहीं पर जीरो से ज्यादा भी न था. मैथ्स और साइंस तो कभी पल्ले नहीं पड़े. इतिहास में कभी अच्छे नंबर नहीं आए. भूगोल भी समझ के परे था. अंग्रेजी में पास होने लायक नंबर मिल जाते थे, हिन्दी भी ठीक-ठाक थी. गणित के सवालों पर ही मेरा दिमाग सवाल उठाता था. आखिर ये वर्गमूल और स्केयर आदि आम जिंदगी में कहां काम आएंगे? माता-पिता, पड़ोसी या दुकानदार कभी मैथ्स के सूत्रों का इस्तेमाल नहीं करते तो मैं क्यों सीखूं?
क्रिकेट और शतरंज में दिमाग खूब चलता था. कॉलेज में पहुंचा तो अर्थशास्त्र, राजनीतिक विज्ञान और कम्यूटर में रुचि हुई. कम्यूटर अच्छे से समझ में आता था. बीए के बाद मास कम्यूनिकेशन्स की पढ़ाई की. संचार की ताकत और तरीकों को जाना. इस दौरान जिंदगी के कुछ बहुत खूबसूरत तो कुछ बेहद निराश करने वाले लम्हों को जीया. काफी कुछ सिखाया यूनिवर्सिटी के दो सालों ने. पर उससे कहीं ज्यादा सीखना अभी बाकी है.
पढ़ाई खत्म की तो प्रिंट मीडिया में नौकरी शुरू की. पंजाब केसरी, दैनिक भास्कर और फिर हिन्दुस्तान में काम किया. पत्रकारिता के साथ-साथ राजनीति से भी वास्ता पड़ा. साढ़े 4 साल प्रिंट मीडिया में रहा. अब खुदा को कुछ और ही मंजूर था. हालात ऐसे बने कि हिन्दुस्तान में मेरे ढ़ाई साल के करिअर का अंत हुआ. जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आया. एक गांठ बांधी कि जीवन में कभी भी किसी भी हालात में नशा नहीं करना है. नशा तो पहले भी नहीं करता था, लेकिन कभी-कभार महफिल में बैठ जाता था.
शायद भगवान कुछ और समय नौकरी करवाना चाहता था, इसलिए वेब मीडिया में चांस मिल गया. आजकल दिल्ली की भीड़ बढ़ा रहा हूं और मोबाइल वैस व वेब मीडिया में काम कर रहा हूं. अब आगे क्या होगा? राम जाने.
और हां, भला ब्लॉगिंग का जिक्र कैसे भूल सकता हूं. लिखने का चस्का काफी पहले से था. खुद को अकेले पाना और फिर अकेलेपन को दूर करने के लिए लिखना. कुछ कहना चाहें और कह ना पाएं तो उसे लिख देना. किसी को गाली न दे सकना और लिख देना. किसी गलती पर प्रायश्चित करने के लिए कागज पर लिख देना. बस. हमारे आस-पास बहुत-सी चीजें हमें कहने या लिखने को मजबूर करती हैं. कुछ लोग कहना पसंद करते हैं तो कुछ लोग लिखना. और कुछ लोग दोनों ही पसंद करते हैं. मैं लिखने में ज्यादा विश्वास करता हूं. इसलिए ब्लॉग पर हूं.